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राजनेताओं पर न लगे आजीवन प्रतिबंध, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से क्यों कही ये बात?

दोषी राजनताओं की सजा को लेकर लगातार बहस चल रही है. इसी बीच केंद्र सरकार ने केंद्र ने दोषी करार दिये गए राजनीतिक नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की सजा को कठोर कहा है. साथ ही अनुरोध करने वाली एक याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध करते हुए कहा है कि इस तरह की अयोग्यता तय करना केवल संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि याचिका में जो अनुरोध किया गया है वह विधान को फिर से लिखने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के समान है, जो न्यायिक समीक्षा संबंधी उच्चतम न्यायालय की शक्तियों से पूरी तरह से परे है.

हलफनामे में कहा गया है, ”यह सवाल कि आजीवन प्रतिबंध लगाना उपयुक्त होगा या नहीं, यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है ”. इसमें कहा गया है कि दंड के क्रियान्वयन को एक उपयुक्त समय तक सीमित कर, रोकथाम सुनिश्चित की गई है और अनावश्यक कठोर कार्रवाई से बचा गया है. केंद्र ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि दंड या तो समय या मात्रा के अनुसार निर्धारित होते हैं.

अपने हलफनामे में, केंद्र ने रेखांकित किया कि शीर्ष अदालत ने निरंतर यह कहा है कि एक विकल्प या दूसरे पर विधायी विकल्प की प्रभावकारिता को लेकर अदालतों में सवाल नहीं उठाया जा सकता. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (1) के तहत, अयोग्यता की अवधि दोषसिद्धि की तारीख से छह साल या कारावास के मामले में रिहाई की तारीख से छह साल तक है।हलफनामे में कहा गया है कि उक्त धाराओं के तहत घोषित की जाने वाली अयोग्यताएं संसदीय नीति का विषय हैं और आजीवन प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा.

केंद्र ने कहा कि न्यायिक समीक्षा के मामले में, न्यायालय प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है, हालांकि, याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत में अधिनियम की धारा 8 की सभी उप-धाराओं में ‘‘छह वर्ष’’ के प्रावधान को ‘‘आजीवन’’ पढ़े जाने का अनुरोध किया गया है. इसने कहा कि आजीवन अयोग्यता, प्रावधानों के तहत लगाई जा सकती है और ऐसा विवेकाधिकार ‘‘निश्चित रूप से संसद के अधिकार क्षेत्र में’’ है.

केंद्र ने कहा कि याचिका अयोग्यता के आधार और अयोग्यता के प्रभावों के बीच महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट करने में विफल रही है. हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 का उल्लेख करना पूरी तरह से गलत है. संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 संसद, विधानसभा या विधानपरिषद की सदस्यता के लिए अयोग्यता से संबंधित हैं. इसके अलावा कहा कि अनुच्छेद 102 और 191 के खंड (ई) संसद को अयोग्यता से संबंधित कानून बनाने की शक्ति प्रदान करते हैं और इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए 1951 का (जन प्रतिनिधित्व) अधिनियम बनाया गया था.

इसने कहा कि संविधान ने संसद को अयोग्यता से संबंधित ऐसे अन्य कानून बनाने का अधिकार दिया है, जिसे बनाना वह उचित समझता हो. केंद्र ने कहा, ‘‘संसद के पास अयोग्यता के आधार और अयोग्यता की अवधि, दोनों निर्धारित करने की शक्ति है.’’न्यायालय ने 10 फरवरी को, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा था.

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