धोबी समाज को एससी कैटेगरी आरक्षण मिले अजय कुमार रजक…
धोबी समाज को एससी कैटेगरी में आरक्षण देने की हिमायत करते हुए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता व लेखक अजय रजक ने जंतर मंतर पर कहा की हमारे रजक समाज के लोग कश्मीर से कन्याकुमारी और पोरबंदर से सिल्चर, तथा नागपुर से भोपाल, महाराष्ट्र, बंगाल, नॉर्थ ईस्ट हर जगह से आज इस मंच पर उपस्थित हुए हैं।
यह पहली बार हुआ है की रजक समाज के लोग किसी महापुरुष के नाम पर इकट्ठा होने लगा है. पहले इनकी कोई अपनी आईकॉन नहीं हुआ करती थी ये बिखरे हुए थे।
मुझे बहुत ही फक्र के साथ कहना पड़ रहा है की अब रजक समाज को उनके
अधिकारों को लेने से कोई नहीं रोक सकता है, क्योंकि अब वो अपने हक़ के लिए एकजुट होकर लड़ना सिख लिया है।
अजय रजक ने आगे कहा की मैंने धोबी (रजक ) समाज पर एक किताब लिखा है, जिसका नाम है “रजक समाज रामराज से लोकतंत्र तक” जो बहुत जल्दी आपके पास आएगा और आप उसे पढ़ेंगे, मैं आज एक राष्ट्र एक जाति और एक आरक्षण पर विस्तार पूर्वक कांस्टीट्यूशनल प्रोविजंस के बारे में बताने जा रहा हूँ।
सबसे पहले मैं ये कहना चाहता हूं की पूरे भारत में 2011 के जनगणना के अनुसार रजक समाज की आबादी करीब 5 करोड़ 22 लाख है और ये पूरे पापुलेशन का 4.01% होता है।
संविधान ने जो आरक्षण दिया गया है वो आर्टिकल 330 के तहत हमें पार्लियामेंट में आरक्षण दिया गया है और 332(1) के तहत हमें विधानसभा में आरक्षण मिला है एवं 335 आर्टिकल के तहत हमें नौकरियों और प्रमोशन में रिजर्वेशन मिला है।
लेकिन कमाल की बात यह है की पूरे भारतवर्ष में रजक समाज को एससी या ओबीसी में एक सामान दर्जा नहीं है।
भारतवर्ष के 14 राज्यों में और पांच केंद्र शासित प्रदेश में रजक समाज ओबीसी
में आता है जबकि देश के 15 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में रजक समाज एससी कैटिगरी में रखा गया है।
मैं यह बताना चाहता हूं की 1950 में जब शेड्यूल कास्ट कॉन्स्टिट्यूशन में यह प्रोविजंस डाला जा रहा था की किस जाति को शेड्यूल कास्ट में रखा जाए और किस जाति को ना रखा जाए, इसके लिए उसमें तीन पैरामीटर फिक्स किये गए थे एक था सोशल बैकवार्डनेस ऑफ दी कम्युनिटी आप उसे स्टेटस भी कह सकते हैं।
दूसरा था एजुकेशनल स्टेटस ऑफ दी कम्युनिटी और तीसरा था अनटचेबल्स स्टेटस ऑफ दी कम्युनिटी।
यहाँ मैं ये कहना चाहता हूं की हम सामाजिक रूप से पिछड़े हैं। एजुकेशन का नेशनल एवरेज 74% है, लेकिन रजक समाज का एजुकेशनल स्तर सिर्फ 15% है। अर्थात हम 25% भी नहीं है तो मैं मानता हूं की हमारे समाज का एजुकेशन आज भी बहुत नीचे है।
उच्य समाज में हमारे धोए कपड़े को आज भी गंगाजल की छींट लगाकर उसे एक्सेप्ट करते है। गांव घर में उसे पानी में भिगोकर घर में ले जाया जाता है। इसका मतलब ये है की आज भी हम छुआछूत के शिकार हैं। अगर मैं सोशली बैकवर्ड हूं अगर मैं एजुकेशनली बैकवर्ड हूं अगर मैं अनटचेबल्स हूं तो भारत के संविधान के अनुसार धोबी जाति को एससी में आरक्षण दिलाने से दुनिया की कोई शक्ति नहीं रोक सकती है।
लेकिन कमी हममें है की हम सरकार के पास अपनी बात को पहुंचा नहीं पा रहे हैं। मैं तो यह कहना चाहता हूं की कश्मीर से कन्याकुमारी हो, सिल्चर से पोरबंदर हो, चाहे नागपुर हो या भोपाल हो, चाहे बंगाल हो, चाहे मणिपुर, नागालैंड, हिमाचल कहीं भी हो हर जगह हमारी स्थिति एक जैसी है, तो हमारे साथ यह नाइंसाफी क्यों हो रही है।
अब मैं कुछ स्टेट की बात करता हूं जहां महाराष्ट्र में कुछ स्टेप आगे बढ़ाया गया था और मध्य प्रदेश में कुछ आगे की गई थी लेकिन फाइनली कंक्लुजन नहीं पहुंच पाया। मैं ये कहना चाहता हूं की तीन बार महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा से संकल्प पारित किया, सन 1977 में सन 1979 में और 1994 में लेकिन फाइनली रजक समाज को आरक्षण नहीं मिल पाया। ऐसे ही एमपी विधानसभा में सन 1998, 2006, 2016 में संकल्प पारित किया गया लेकिन वहां भी लागु नहीं हो पाया।
जब वहां रिजर्वेशन देने के लिए एक कमीशन बनाया गया उस कमीशन द्वारा स्टडी कराया गया, उसने भी अपने रिपोर्ट में लिखा की जो रजक जाति हैं वो सोशली बैकवर्ड हैं इकोनॉमिकली पीछे हैं. एजुकेशनली पीछे हैं और अनटचेबल्स है।
दूसरी बात जो वहां की आयोग है उसमें भी रिपोर्ट दिया है की ये रजक जाति शेड्यूल कास्ट है। फिर भी हमें पुरे देश में आरक्षण एक सामान नहीं मिल पाया है। इसलिए हम सबको एक जुट हो कर अपनी बातों को सरकार तक पहुँचाने का काम करना होगा।
कुल मिलकर अगर इस समाज को आरक्षण दिया जाता है तो साढ़े 3 कड़ोर लोगों को फायदा होगा अकेले एमपी में लगभग 50 लाख लोगों को फायदा होगा।