कौन हैं रेखा गुप्ता? कैसे मिल गई मुख्यमंत्री की कुर्सी?
Rekha Gupta लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हारीं. मेयर का चुनाव हारीं. 2025 में पहली बार विधायक बनीं और अब पूरी दिल्ली संभालेंगी.
जब शीला दीक्षित ने बीजेपी से सत्ता छीनी थी, तब भी एक महिला नेता ही दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं. सुषमा स्वराज, जिन्हें 1998 विधानसभा चुनाव से सिर्फ दो महीने पहले साहिब सिंह वर्मा को हटा कर मुख्यमंत्री बनाया गया था. उन्हीं के कार्यकाल में चुनाव हुए और बीजेपी चुनाव हार गई. 27 साल बाद जब दिल्ली की सत्ता में वापसी हुई है तो बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी एक महिला कार्यकर्ता को ही सौंपी है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के दिन जब प्रवेश वर्मा ने नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को हराया तो कहा जाने लगा कि सीएम पद के लिए वह पहले दावेदार हैं. फिर इस लिस्ट में विजेंद्र गुप्ता का नाम भी शामिल हुआ. जो 10 साल से विधानसभा में बीजेपी की तरफ से अकेले मोर्चा संभालते देखे जाते थे. विजेंद्र गुप्ता का नाम मुख्यमंत्री के नाम के एलान के थोड़ी देर पहले तक रेस में सुनाई दे रहा था. और भी नाम सीएम रेस में थे, जैसे दिल्ली बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष सतीष उपाध्याय, विधायक आशीष सूद और अरविंदर सिंह लवली. सांसद मनोज तिवारी के नाम पर भी खूब दावे हुए.
लेकिन पार्टी ने नतीजे आने के कुछ ही दिनों बाद तय कर लिया था कि महिला नेता को ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. इस बार दिल्ली चुनाव में बीजेपी की तरफ से चार महिलाएं विधायक बनी हैं. नीलम पहलवान, रेखा गुप्ता, पूनम शर्मा और शिखा रॉय.
लंबे समय से बीजेपी को ‘ब्राह्मण-बनिया पार्टी’ कहा जाता है. वैश्य समाज दशकों से बीजेपी के पीछे लामबंद रहा है. कई दूसरे समुदायों से कम आबादी होने के बाद भी बीजेपी के लिए ये वैश्य समाज कितना जरूरी है यह इस बात से समझा जा सकता है कि पार्टी ने अपने 17 प्रतिशत टिकट वैश्य उम्मीदवारों को दिए थे. रेखा गुप्ता भी वैश्य समाज से आती हैं.
मुख्यमंत्री चुने जाने से पहले तक रेखा गुप्ता BJP का बड़ा नाम नहीं थीं. हालांकि ऐसा नहीं है कि पार्टी ने उन्हें मौके नहीं दिए. रेखा को 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में शालीमार बाग सीट से चुनाव में उतारा गया. लेकिन वो दोनों चुनाव हार गईं. 2023 में उन्हें शैली ओबरॉय के खिलाफ मेयर के चुनाव में भी उतारा गया. वहां भी रेखा को निराशा हाथ लगी. पर किसे पता था दो साल पहले जो मेयर का चुनाव नहीं जीत पाईं, वही रेखा दिल्ली की सत्ता के शीर्ष पर काबिज हो जाएंगी.
जिस दिल्ली पर अब रेखा ‘राज’ शुरू होने जा रहा है, वहां वे दो साल की उम्र में आई थीं. पैतृक परिवार हरियाणा के जींद से जुड़ा है. 1976 में उनका परिवार दिल्ली आ गया. यहीं उनकी पूरी शिक्षा हुई. वहीं राजनीतिक यात्रा 1992 में दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज से शुरू हुई. कॉलेज के दिनों से ही रेखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ गई थीं. 1996-97 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) की अध्यक्ष बनीं और छात्र हितों से जुड़े मुद्दे सक्रिय रूप से उठाए.
DUSU अध्यक्ष के रूप में रेखा गुप्ता ने पहली बार ‘कॉमन एडमिशन फॉर्म’ की शुरुआत की. इससे लाखों छात्रों को लाभ मिला. दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज में पढ़ने की इच्छा देश के हर छोटे-बड़े शहर के छात्रों में होती है. लेकिन अलग-अलग कॉलेज की अलग-अलग एडमिशन प्रक्रिया होने की वजह से छात्रों को दिक्कतें होती थीं. कॉमन एडमिशन फॉर्म की पहल के कारण विद्यार्थियों को अलग-अलग कॉलेजों में आवेदन करने की परेशानी से मुक्ति मिली और प्रवेश प्रक्रिया आसान हो गई. छात्रसंघ की अध्यक्ष बनने के बाद से ही रेखा सक्रिय राजनीति में भागीदार बन गई थीं. 2003-04 में वे भाजपा युवा मोर्चा की दिल्ली इकाई से जुड़ीं. उन्हें सचिव पद दिया गया. इसके बाद 2004 से 2006 तक उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा की राष्ट्रीय सचिव के तौर पर जिम्मेदारी निभाई. रेखा ने पहली बार पार्षद का चुनाव 2007 में लड़ा. वो उत्तर पीतमपुरा से पार्षद बनीं. पार्षद चुने जाने के बाद महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए ‘सुमेधा योजना’ पहल शुरू की. इससे आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायता मिली.
पार्षद बनने के बाद रेखा पार्टी में अलग-अलग जिम्मेदारियां निभाती रहीं. लेकिन 2011 के अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी रेखा गुप्ता समेत पूरी बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई. 2015 आते-आते अरविंद केजरीवाल के नाम की लहर बन चुकी थी. रेखा गुप्ता को 2015 के विधानसभा चुनाव में शालीमार बाग सीट से टिकट मिला. पर उन्हें आम आदमी पार्टी की वंदना कुमारी ने करीब 11 हजार वोटों से हरा दिया. पार्टी ने 2020 में उन पर फिर भरोसा जताया. लेकिन इस बार भी उन्हें निराशा हाथ लगी. हालांकि तब हार का अंतर कम होकर 3,400 वोट रह गया.
आखिरकार पिछली दो हारों का बदला लेते हुए 2025 विधानसभा चुनाव में रेखा गुप्ता ने वंदना कुमारी को करीब 30 हजार वोटों से हरा दिया. वे पहली बार विधायक बनीं और पार्टी ने पहली ही बार में उन्हें दिल्ली की कुर्सी सौंप दी.