अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : महिलाओं के सपनों को उड़ान की जरूरत, न कि बेड़ियों की : डॉ बीरबल झा
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, अंग्रेजी संचार कौशल में अग्रणी संस्थान ब्रिटिश लिंग्वा ने “शिक्षा और भाषा के माध्यम से महिला सशक्तिकरण: सामाजिक न्याय की ओर एक क दम” विषय पर एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध शिक्षाविद, समाज सुधारक और ब्रिटिश लिंग्वा के संस्थापक डॉ. बीरबल झा ने की।
इस अवसर पर डॉ. झा ने समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और शिक्षा व भाषा कौशल के माध्यम से लैंगिक समानता की अनिवार्यता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “महिला दिवस केवल उत्सव का अवसर नहीं, बल्कि लैंगिक समानता के प्रति संकल्पबद्ध होने का दिन है। महिलाएं समाज की रीढ़ हैं, और उनका सशक्तिकरण ही किसी राष्ट्र की वास्तविक प्रगति को दर्शाता है। महिला केवल परिवार की धुरी ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज की निर्माता होती है। यदि हम महिलाओं को सशक्त करते हैं, तो हम पूरे विश्व को सशक्त कर रहे होते हैं।”
शिक्षा: महिला सशक्तिकरण की कुंजी
संगोष्ठी में महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा को सबसे प्रभावी साधन बताया गया। डॉ. झा ने कहा, “एक शिक्षित लड़की न केवल स्वयं को, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी सशक्त बनाती है। जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं, तो आप पूरे समाज को शिक्षित करते हैं। जब आप एक महिला को सशक्त करते हैं, तो आप संपूर्ण सभ्यता को मजबूत करते हैं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने और सामाजिक बाधाओं को तोड़ने का सबसे प्रभावी माध्यम है।
महिलाओं के योगदान को मिले बराबरी का दर्जा
इतिहास गवाह है कि महिलाओं ने सभ्यता, अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी, वे आज भी भेदभाव और असमानता का सामना कर रही हैं। डॉ. झा ने कहा,”महिला सशक्तिकरण कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति इस बात से आंकी जाती है कि वहां महिलाओं को कितनी गरिमा और समान अवसर मिलते हैं। जो समाज अपनी महिलाओं को सम्मान और समान अवसर देता है, वही वास्तव में समृद्ध होता है।”
रूढ़ियों को तोड़ने की जरूरत
डॉ. झा ने कहा कि सदियों से सामाजिक मान्यताओं ने महिलाओं की आकांक्षाओं को सीमित कर दिया है, लेकिन जब भी उन्हें अवसर मिले हैं, उन्होंने हर क्षेत्र में सफलता हासिल की है—चाहे वह राजनीति हो, व्यवसाय, विज्ञान या कला।
उन्होंने कहा, “महिलाओं के सपनों को रूढ़ियों में नहीं बांधना चाहिए। उन्हें बेड़ियों की नहीं, बल्कि उड़ान की जरूरत है।”
उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं की प्रगति में बाधा डालने वाली समस्याओं जैसे कार्यस्थल पर भेदभाव, वेतन असमानता और नेतृत्व के अवसरों की कमी को दूर करना बेहद जरूरी है। “महिलाएं किसी सीमा में बंधने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया को रोशन करने के लिए बनी हैं।”
महिलाओं के सम्मान के बिना अधूरी प्रगति
डॉ. झा ने कहा कि किसी भी समाज की असली पहचान इस बात से होती है कि वहां महिलाओं को कितना सम्मान और समानता मिलती है।
“जो समाज अपनी महिलाओं का सम्मान नहीं करता, वह कभी भी वास्तविक प्रगति नहीं कर सकता। महिलाओं को गरिमा के साथ जीने का अधिकार मिलना चाहिए और उनकी आवाज़ हर स्तर पर सुनी जानी चाहिए।”
डॉ बीरबल झा आगे कहा, “महिला सशक्तिकरण केवल सरकार या संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक महिलाएं सुरक्षित, सम्मानित और समान अधिकारों से युक्त नहीं होंगी, तब तक समाज का संतुलित विकास संभव नहीं होगा।”
शिक्षा और भाषा से खुले नए अवसरों के द्वार
इस संगोष्ठी ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षा और भाषाई दक्षता महिलाओं को न केवल आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि उन्हें समाज में समान अवसर प्राप्त करने में भी सक्षम बनाती है। डॉ बीरबल झा ने इस अवसर पर बल देते हुए कहा कि वह महिलाओं को शिक्षा और भाषा कौशल के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि वे समाज के हर क्षेत्र में बराबरी से भागीदारी निभा सकें।
यह संगोष्ठी महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुई, जहां शिक्षा और भाषा को सामाजिक न्याय का महत्वपूर्ण उपकरण बताया गया।